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Sangya Definition (संज्ञा कीपरिभाषा)
संसार
के किसी भी
प्राणी, वस्तु, स्थान, जाति
या भाव, दशा आदि
के नाम को संज्ञा (Sangya) कहते
हैं|
निम्नलिखित
उदाहरण से हम
संज्ञा तथा
उनके प्रकार
आसानी से समझ
सकते हैं-
भारत एक
विकासशील देश
है
नरेन्द्र
मोदी भारत
के सजग नेता
हैं
गंगा एक
पवित्र नदी है
कुरान मुसलमानों
का पवित्र
ग्रन्थ है
आज मोहन बहुत
खुश है.
त्योहार
हमारे घर खुशियां लाता
है.
क्रिकेट भारत
का लोकप्रिय
खेल है.
मोहन रोज़
दो गिलास दूध
और चार अंडे
खाता है
ऊपर
लिखे वाक्यों
में सभी
चिन्हित शब्द
संज्ञा के
किसी ना किसी
प्रकार हैं.
भारत– देश
का नाम
नरेन्द्र
मोदी, मोहन – व्यक्ति
का नाम
गंगा
– नदी
का नाम
कुरान
– ग्रन्थ
का नाम
मुसलमानों
– विशेष
समुदाय का नाम
ग्रन्थ
– किताब
की विशेष
श्रेणी का नाम
क्रिकेट
– खेल
का नाम
गिलास
– बर्तन
का नाम
दूध, अंडा
– खाद्य
पदार्थ का नाम
खुशियां
– विशेष
मनः स्थिति
(भाव) का नाम
संज्ञा के भेद – (Sangya ke Bhed):
1 . व्यक्तिवाचक
संज्ञा (Vyakti Vachak Sangya)- गुलाब, दिल्ली, इंडिया
गेट, गंगा, राम
आदि
2 . जातिवाचक
संज्ञा (Jativachak Sangya) – गधा, क़िताब, माकन, नदी
आदि
3. भाववाचक
संज्ञा -(Bhav Vachak Sangya) सुंदरता, इमानदारी, प्रशन्नता, बईमानी
आदि
जातिवाचक
संज्ञा के दो
उपभेद हैं –
4. द्रव्यवाचक
संज्ञा (Dravya Vachak Sangya) तथा
5. समूहवाचक
संज्ञा (Samuh Vachak Sangya).
इन
दो उपभेदों को
मिला कर
संज्ञा के कुल
5 प्रकार
को जाते हैं|
अब संज्ञा के सभी प्रकार का विस्तृत वर्णन नीचे किया गया है-
1. व्यक्तिवाचक
संज्ञा (Vyakti Vachak Sangya)
जिन शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति, विशेष प्राणी, विशेष स्थान या किसी विशेष वस्तु का बोध हो उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है.
जैसे- रमेश (व्यक्ति का नाम), आगरा (स्थान का नाम), बाइबल (क़िताब का नाम), ताजमहल (इमारत का नाम), एम्स (अस्पताल का नाम) इत्यादि.
2. जातिवाचक संज्ञा (Jativachak Sangya)
वैसे
संज्ञा शब्द
जो की एक ही
जाति के
विभिन्न
व्यक्तियों, प्राणियों, स्थानों
एवं वस्तुओं
का बोध कराती
हैं उन्हें
जातिवाचक
संज्ञाएँ
कहते है।
कुत्ता, गाय, हाथी, मनुष्य, पहाड़
आदि शब्द एकही
जाति के
प्राणियों, वस्तुओं
एवं स्थानों
का बोध करा
रहे है।
जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत निम्नलिखित दो है –
(क) द्रव्यवाचक
संज्ञा – (Dravya Vachak Sangya)
जिन संज्ञा शब्दों से किसी पदार्थ या धातु का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है ।
जैसे – दूध, घी, गेहूँ, सोना, चाँदी, उन, पानी आदि द्रव्यवाचक संज्ञाएँ है।
(ख) समूहवाचक
संज्ञा -(Samuh Vachak Sangya)
जो शब्द किसी समूह या समुदाय का बोध कराते है, उन्हें समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे – भीड़, मेला, कक्षा, समिति, झुंड आदि समूहवाचक संज्ञा हैँ।
व्यक्तिवाचक
संज्ञा का
जातिवाचक
संज्ञा के रूप
में प्रयोग: (Vyakti Vachak Sangya Use in form of
Jati Vachak Sangya)
व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ कभी कभी ऐसे व्यक्तियों की ओर इशारा करती हैं, जो समाज में अपने विशेष गुणों के कारण प्रचलित होते हैं। उन व्यक्तियों का नाम लेते ही वे गुण हमारे मस्तिष्क में उभर आते है, जैस-
हरीशचंद्र (सत्यवादी), महात्मा गांधी (मकात्मा), जयचंद (विश्वासघाती), विभीषण (घर का भेदी), अर्जुन (महान् धनुर्धर) इत्यादि। कभी कभी बोलचाल में हम इनका इस्तेमाल इस प्रकार कर लेते हैं-
1. इस देश
में जयचंदों की
कमी नहीं ।
(जयचंद-
देशद्रोही के
अर्थ में)
2. कलियुग
में हरिशचंद्र कहां
मिलते हैं ।
(हरिशचंद्र-
सत्यवादी के
अर्थ में
प्रयुक्त)
3. हमेँ
देश के विभीषणों से
बचकर रहना
चाहिए ।
(विभीषण- घर के
भेदी के अर्थ
में प्रयुक्त)
जातिवाचक
संज्ञा का
व्यक्तिवाचक
संज्ञा के रूप
में प्रयोग- (Jativachak Sangya Use in form of
Vyakti Vachak Sangya)
कमी-कभी
जातिवाचक
संज्ञाएँ रूढ
हो जाती है । तब
वे केवल एक
विशेष अर्थ
में प्रयुक्त
होने लगती
हैं- जैसे:
पंडितजी हमारे
देश के प्रथम
प्रधानमंत्री
थे।
यहाँ ‘पंडितजी’ जातिवाचक
संज्ञा शब्द
है, किंतु
भूतपूर्व
प्रधानमंत्री
‘पंडित
जवाहरलाल
नेहरू’ अर्थात् व्यक्ति
विशेष के लिए
रूढ़ हो गया
है । इस प्रकार
यहाँ
जातिवाचक का
व्यक्तिवाचक
संज्ञा के रूप
में प्रयोग
किया गया है।
राष्ट्रपिता गांधी
जी ने हरिजनों
का उद्धार
किया ।
(राष्ट्रपिता
गांधी)
नेता जी ने
कहा- “तुम
मुझे खून दे, मैं
तुम्हें
आजादी कूँरा ।
(नेता जी – सुभाष
चंद्र बोस
3. भाववाचक
संज्ञा – (Bhav Vachak Sangya)
जो
संज्ञा शब्द गुण, कर्म, दशा, अवस्था, भाव आदि
का बोध कराएँ
उन्हें
भाववाचक
संज्ञाएँ कहते
है।
जैसे
– भूख, प्यास, थकावट, चोरी, घृणा, क्रोध, सुंदरता
आदि। भाववाचक संज्ञाओं
का संबंध
हमारे
भावों
से होता है ।
इनका कोई रूप
या आकार नहीं होता
। ये अमूर्त
(अनुभव किए
जाने वाले)
शब्द होते है।
भाववाचक
संज्ञाओं का
जातिवाचक
संज्ञा के रूप
में प्रयोग :
भाववाचक संज्ञाएँ जब बहुवचन में प्रयोग की जाती है, तो वे जातिवाचक संज्ञाएँ बन जाती हैं ; जैसे –
(क) बुराई से
बचो । (
भाववाचक
संज्ञा)
बुराइयों से
बचो ।
(जातिवाचक
संज्ञा)
(ख) घर से
विद्यालय की दूरी अधिक
नहीं है।
(भाववाचक
संझा)
मेरे
और उसके बीच दूरियाँ बढ़ती
जा रही है ।
(जातिवाचक
संज्ञा)
द्रव्यवाचक
संज्ञाएँ एवं
समुहवाचक
संज्ञाएँ भी
जब बहुवचन में
प्रयोग होती
हैं तो वे
जातिवाचक
संज्ञाएँ
बन जाती हैं, जैसे-
(क) मेरी कक्षा में
50 बच्चे
हैं ।
(समूहवाचक
संज्ञा)
भिन्न
– भिन्न
विषयों की कक्षाएँ चल
रही है ।
(जातिवाचक
संज्ञा)
(ख) सेना अभ्यास
कर रही है।
(समूहवाचकसंज्ञा)
हमारी
सारी सेनाएँ वीरता
से लडी।
(जातिवाचक
संज्ञा)
(ग) रोहन का परिवार यहां
रहता है।
(समूहवाचक
संज्ञा)
आज
कल सभी परिवारों में
छोटे-मोटे
झगड़े होते
रहते है ।
(जातिवाचक संज्ञा)
(घ) लकडी से
अलमीरा बनता
है।
(द्रव्यवाचक
संझा)
ढेर
सारी लकडियां इकट्ठी
करो।
(जातिवाचक
संज्ञा)
(ङ) सरसों का तेल पीला
होता है।
(द्रव्यवाचक
संज्ञा)
वनस्पति तेलों का
प्रचलन शहरों
में ज्यादा
है। (जातिवाचक
संज्ञा)
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Sarvanam in Hindi (सर्वनाम):
जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त किए जाते हैं, वे सर्वनाम (Sarvnam) कहलाते हैं।
सर्वनाम सभी संज्ञा शब्दों के स्थान पर प्रयोग होने वाले वे शब्द हैं, जो भाषा को संक्षिप्त एवं रचना की दृष्टि से सुंदर बनाने में सहायक होते हैं।
“पूजा ने कहा कि पूजा कल विद्यालय नहीं जाएगी, क्योंकि पूजा को दिल्ली जाना है। पूजा पूजा की नानी जी को देखने दिल्ली जा रही है। पूजा की नानी जी बीमार हैं।”
उपर्युक्त
पंक्तियों
में “पूजा” नाम
बार-बार आने
से भाषा सटीक
नहीं लग रही
है।
नाम
की पुर्नावृति
(repetition) से
भाषा के
प्रवाह में भी
रुकावट
उत्पन्न हो रही
है।
हम
इन वाक्यों को
ऐसे भी लिख या
बोल सकते हैं-
पूजा
ने कहा कि वह कल
विद्यालय
नहीं जाएगी, क्योंकि उसे दिल्ली
जाना है।
वह अपनी नानी
जी को देखने
दिल्ली जा रही
है।
उसकी नानी
जी बीमार हैं।
इस
बार पूजा नाम
की आवृत्ति से
बचने के लिए
पूजा के स्थान
पर वह, उसे, अपनी शब्दों
का प्रयोग
किया है। ये
शब्द सर्वनाम
कहलाते हैं।
सर्वनाम
शब्द दो
शब्दों के योग
से बना है – सर्व
+ नाम।
सर्व
का अर्थ
है-सबका
अर्थात् जो
शब्द सबके नाम
के स्थान पर
प्रयोग किए
जाते हैं, उन्हें
सर्वनाम कहते
हैं।
मैं
तू
तुम
आप
हम
यह
वह
जो
कोई
कुछ
क्या, आदि
सर्वनाम हैं।
सर्वनाम सभी प्रकार की संज्ञाओं (नामों) के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं। अत: संज्ञा के समान ही विकारी शब्द होने के कारण इनमें भी कारक के कारण विकार या परिवर्तन आता है-जैसे- तू, तुमको, तुझको, तुझे, तेरा, तेरे लिए, तुझमें, आदि।
संज्ञा
के समान ही
सर्वनाम के भी
दो वचन होते हैं-
(क) एकवचन ; जैसे-मैं, तू, यह, वह, आदि।
(ख)
बहुवचन ; जैसे-हम, तुम, ये, वे, आदि।
सर्वनाम
शब्द दोनों
लिंगों में एक
जैसे ही रहते
हैं; जैसे-
मैं, तू, तुम, आप, आदि
तथा
लिंग-संबंधी
जो प्रभाव
वाक्य में दिखाई
देता है, वह
क्रिया-पदों
से स्पष्ट
होता है;
जैसे-(क)
वह जाता है। (ख)
वह जाती है।
सर्वनाम के निम्नलिखित छह भेद हैं
Purushvachak Sarvanam पुरुषवाचक सर्वनाम)
पुरुषवाचक
सर्वनाम (Purushvachak
Sarvanam)
अपने
लिए, सुनने
वाले के लिए
या किसी अन्य
व्यक्ति के लिए
प्रयोग किये
गए सर्वनाम
पुरुषवाचक
सर्वनाम की
श्रेणी में
आते हैं,
जैसे
–
(क) मैं खेल
रहा हूँ। तू
भी खेल। वे सब
भी खेल रहे हैं।
(ख) हम खेल
रहे हैं। तुम
भी खेलो। ये
सब भी हमारे
साथ खेलेंगे।
उपर्युक्त
वाक्यों में –
(i) वक्ता
द्वारा अपने
लिए प्रयोग
किए गए सर्वनाम
हैं- मैं, हम।
(ii) वक्ता
द्वारा
श्रोता के लिए
प्रयोग किए गए
सर्वनाम हैं-
तू, तुम।
(iii) वक्ता
द्वारा अन्य
व्यक्तियों
के लिए प्रयोग
किए गए
सर्वनाम हैं-
वे, ये।
इसी
आधार पर
पुरुषवाचक
सर्वनाम के
निम्नलिखित
तीन उपभेद हैं
:
(i). उत्तम
पुरुष
(ii). मध्यम
पुरुष
(iii). अन्य
पुरुष
(i) उत्तम
पुरुषवाचक
सर्वनाम (Uttam
Purushvachak Sarvanam): वक्ता
या लेखक जिन
सर्वनामों का
प्रयोग अपने लिए
करता है, उन्हें
उत्तम
पुरुषवाचक
सर्वनाम कहते
हैं|
जैसे-मैं,
हम, आदि।
(ii) मध्यम
पुरुषवाचक
सर्वनाम (Madhayam
Purushvachak Sarvanam): वक्ता
या लेखक
द्वारा जो
सर्वनाम
श्रोता के लिए
प्रयुक्त किए
जाते हैं, उन्हें
मध्यम
पुरुषवाचक
सर्वनाम कहते
हैं|
जैसे-तू,
तुम, आप, आदि।
(iii) अन्य
पुरुषवाचक
सर्वनाम (Anya
Purushvachak Sarvanam): वक्ता
अथवा लेखक जिन
सर्वनामों का
प्रयोग अपने
या श्रोता के
अतिरिक्त
अन्य
व्यक्तियों के
लिए करते हैं, उन्हें
अन्य
पुरुषवाचक
सर्वनाम कहते
हैं|
जैसे-यह,
वह, ये, वे, आदि।
पुरुषवाचक
सर्वनाम कारक
के रूप में-
कारक |
एकवचन |
बहुवचन |
||||
मैं |
तू |
वह |
हम |
तुम |
वे |
|
कर्ता |
मैं, मैंने |
तू, तूने |
वह, उसने |
हम, हमने |
तुम, तुमने |
वे, उन्होंने |
कर्म |
मुझे, मुझको |
तुझे, तुझको |
उसे, उसको |
हमें, हमको |
तुम्हे, तुमको |
उन्हें, उनको |
करण |
मुझसे, |
तुझसे, |
उससे, |
हमसे, |
तुमसे, |
उनसे, उनके द्वारा |
सम्प्रदान |
मेरे लिए, मुझे, मुझको |
तेरे लिए, युझे, तुझको |
उसके लिए, उसे, उसको |
हमारे लिए, हमको, हमें |
तुम्हारे लिए, तुम्हे, तुमको |
उनके लिए, उन्हें, उनको |
अपादान |
मुझसे (अलगाव) |
तुझसे (अलगाव) |
उससे (अलगाव) |
हमसे (अलगाव) |
तुमसे (अलगाव) |
उनसे (अलगाव) |
सम्बन्ध |
मेरा, मेरी, मेरे |
तेरा, तेरी, तेरे |
उसका, उसकी, उसके |
हमारा, हमारी, हमारे |
तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे |
उनका, उनकी, उनके |
अधिकरण |
मुझमे, मुझ पर |
तुझमे, तुझपर |
उसमे, उस पर |
हममे, हम पर |
तुममे, तुम पर |
उनमे, उनपर |
Nishchay Vachak Sarvanam (निश्चयवाचक सर्वनाम)
निश्चयवाचक
सर्वनाम – (Nishchay Vachak Sarvanam)
जिस
सर्वनाम के
द्वारा पास या
दूर स्थित
व्यक्तियों, प्राणियों
अथवा वस्तुओं
की ओर संकेत
किया जाए, उन्हें
निश्चयवाचक
सर्वनाम कहते
हैं
जैसे
(क) वह मेरा
मित्र है।
(ख) यह अमन का
खिलौना है।
(ग) वे मोहन
के चित्र हैं।
(घ) वे नेहा
की पुस्तकें
हैं।
इन
वाक्यों में– वह, वे
निश्चयवाचक
सर्वनाम हैं, जो
दूर स्थित
वस्तुओं एवं
व्यक्तियों
की ओर संकेत
कर रहे हैं, इन्हें
दूरवर्ती
निश्चयवाचक
सर्वनाम कहते
हैं।
यह, ये
भी
निश्चयवाचक
सर्वनाम हैं, जो
निकटवर्ती
वस्तुओं की ओर
संकेत कर रहे
हैं, अत:
ये निकटवतीं
निश्चयवाचक
सर्वनाम हैं।
Anishchay Vachak Sarvanam (अनिश्चयवाचक सर्वनाम)
अनिश्चयवाचक सर्वनाम (Anishchay Vachak Sarvanam): जिन सर्वनामों से निश्चित वस्तु एवं व्यक्ति का बोध न हो, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं|
जैसे-
कोई आया है|
कुछ लाया है|
किसी से बताना नहीं|
इन वाक्यों में कोई, कुछ तथा किसी सर्वनाम शब्द किसी निश्चित व्यक्ति अथवा निश्चित वस्तु की ओर संकेत नहीं करते, अतः ये अनिश्चयवाचक सर्वनाम हैं।
Prashn Vachak Sarvanam (प्रश्नवाचक सर्वनाम)
जिन
सर्वनाम
शब्दों का
प्रयोग
प्रश्न पूछने के
लिए किया जाता
है, वे
‘प्रश्नवाचक
सर्वनाम’ कहलाते
हैं.
जैसे–
(क) दरवाजे
पर कौन खड़ा है?
(ख) तुम्हारे
हाथ में क्या
है?
कौन
प्रश्नवाचक
सर्वनाम का
प्रयोग
प्राणिवाचक
संज्ञाओं के
स्थान पर किया
जाता है। जबकि
क्या
प्रश्नवाचक
सर्वनाम का
प्रयोग
अप्राणिवाचक
संज्ञाओं के
स्थान पर किया
जाता है।
Sambandh Vachak Sarvanam (सम्बन्धवाचक सर्वनाम)
जो
सर्वनाम शब्द
किसी अन्य
उपवाक्य में
प्रयुक्त
संज्ञा या
सर्वनाम से
संबंध
दर्शाते हैं, उन्हें
संबंधवाचक
सर्वनाम कहते
हैं|
जैसे
–
(क) जो
करेगा, सो
भरेगा।
(ख) जिसकी
लाठी उसकी
भैस।
(ग) यह
वही लड़का है,
जो
बाज़ार में
मिला था।
(घ) जो
जीता वही
सिकंदर।
Nij Vachak Sarvanam (निजवाचक सर्वनाम)
(क) मैं
यह काम स्वयं
कर लूंगा।
(ख) मैं
आप ही चला
जाऊँगा।
(ग) वह अपने
आप आ जाएगा।
(घ) उसे
अपना काम खुद
करने दो।
उपर्युक्त
वाक्यों में
स्वयं, आप, अपने
आप एवं अपना
निजवाचक
सर्वनाम हैं, जो
वाक्यों में
कर्ता के साथ
अपनेपन का बोध
करा रहे हैं।
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Visheshan Aur Visheshan ke Bhed विशेषण और विशेषण के भेद
संज्ञा
और सर्वनाम की
विशेषता
बतानेवाले शब्द
को (विशेषण Visheshan) कहते
हैं।
जैसे-
काली’ गाय,
‘अच्छा’ लड़का।
विशेषण
जिस शब्द की
विशेषता
बतलाता है, उसे विशेष्य कहते
हैं।
जैसे-उजली
गाय मैदान में
खड़ी है। यहाँ
‘उजली’ विशेषण
और ‘गाय’ विशेष्य है
।
Visheshan Ke Bhed
अर्थ
की दृष्टि से
विशेषण (Visheshan) के
मुख्यत: छह
भेद हैं-
(1) गुणवाचक
विशेषण (Gunvachak Visheshan)
(2) परिमाणवाचक
विशेषण (Parimaan Vachak Visheshan)
(3) संख्यावाचक
विशेषण (Sankhya Vachak Visheshan)
(4) सार्वनामिक
विशेषण (Sarvanamik Visheshan)
(5) तुलनाबोधक
विशेषण (Tulna Bodhak Visheshan)
(6) संबंधवाचक
विशेषण (Sambandh Vachak Visheshan)
(1) गुणवाचक विशेषण– (Gunvachak Visheshan) संज्ञा या सर्वनाम के गुण, रूप, रंग, आकार, अवस्था, स्वभाव, दशा, स्वाद, स्पर्श, गंध, दिशा, स्थान, समय, भार, तापमान, इत्यादि का बोध करानेवाले शब्द गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं। गुणवाचक विशेषण के साथ ‘सा’ जोड़कर इसके गुणों में कमी की जाती है । जैसे-मोटा-सा, थोड़ा-सा, छोटा-सा, इत्यादि ।
(2) परिमाणवाचक
विशेषण (Parimaan Vachak Visheshan) यह
किसी वस्तु की
नाप या तौल का
बोध कराता है
। जैसे-सेर भर
दूध, थोड़ा
पानी, कुछ
पानी, सब धन, और
घी, इत्यादि
। परिमाणवाचक
के दो भेद हैं-
(i) निशिचत
परिमाणवाचक– दो
सेर घी, दस हाथ
जगह, आदि
।
(ii) अनिश्चित
परिमाणवाचक– बहुत
दूध, थोड़ा
धन, पूरा
आनन्द, इत्यादि
।
(3) संख्यावाचक
विशेषण (Sankhya Vachak Visheshan) -जिस
विशेषण से
संज्ञा या
सर्वनाम की
संख्या का बोध
हो, उसे
संख्यावाचक
विशेषण कहते
हैं।
जैसे—चार
घोडे, तीस दिन, कुछ
लोग, सब
लड़के, इत्यादि
।
संख्यावाचक
के भी दो भेद
हैं
(i) निश्चित
संख्यावाचक–आठ
गाय, एक
दर्जन
पेन्सिल, आदि ।
(ii) अनिश्चित
संख्यावाचक-कुछ
लड़के, कई आदमी, थोड़े
चावल, इत्यादि
।
(4) सार्वनामिक विशेषण (Sarvanamik Visheshan)–
जिस
सर्वनाम का
प्रयोग
विशेषण की तरह
होता है, उसे
सार्वनामिक
विशेषण कहते
हैं। जैसे-वह
आदमी, यह
लड़की ।
इन
वाक्यों में ‘वह’ तथा
‘यह’ ‘आदमी’ और
‘लड़की’ की
विशेषता
बताते हैं ।
सार्वनामिक
विशेषण के भी
दो भेद हैं-
(i) मौलिक
सार्वनामिक
विशेषण–सर्वनाम
का मूल रूप जो
किसी संज्ञा
की विशेषता
बताए, वह
मौलिक
सार्वनामिक
विशेषण
कहलाता है।
जैसे- यह
लड़का, कोई
नौकर, कुछ काम
इत्यादि।
(ii) यौगिक
सार्वनामिक
विशेषण-सर्वनाम
का
रूपान्तरित
रूप, जो
संज्ञा की
विशेषता बताए, वह
यौगिक
सार्वनामिक
विशेषण
कहलाता है।
जैसे- ऐसा
आदमी, कैसा
घर, उतना
काम इत्यादि।
(5) तुलनाबोधक
विशेषण (Tulna Bodhak Visheshan)-दो या दो
से अधिक
वस्तुओं या
भावों के गुण, रूप, स्वभाव, स्थिति
इत्यादि की
परस्पर तुलना
जिन विशेषणों
के माध्यम से
की जाती है, उन्हें
तुलनाबोधक
विशेषण कहते
हैं ।
तुलना
की तीन
अवस्थाएँ
होती हैं—
(1) मूलावस्था,
(2) उत्तरावस्था,
(3) उत्तमावस्था।
जैसे- अधिक, अधिकतर, अधिकतम । ये क्रमश: तुलनात्मक अवस्थाएँ हैं ।
(6) संबंधवाचक
विशेषण (Sambandh Vachak Visheshan)-जो
विशेषण किसी
वस्तु की
विशेषताएँ
दूसरी वस्तु
के संबंध में
बताता है, तो
उसे
संबंधवाचक
विशेषण कहते
हैं ।
इस
तरह के विशेषण
संज्ञा, क्रिया-विशेषण
तथा क्रिया से
बनते हैं ।
जैसे-‘दयामय’ ‘दया’ संज्ञा
से, ‘बाहरी’ ‘बाहर’ क्रियाविशेषण
से, ‘गला’ ‘गलना’ क्रिया
से ।
विशेषणों
का निर्माण-
कुछ
शब्द तो अपने
मूल रूप में
ही विशेषण
होते हैं।
जैसे-अच्छा, बुरा, सुंदर, बदमाश, इत्यादि
।
लेकिन कुछ विशेषण दूसरी जातियों के शब्दों में उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगा कर भी बनाये जाते हैं, ऐसे विशेषणों को व्युत्पन्न विशेषण कहते हैं| उदाहरण-
(क)
संज्ञा से– उपसर्ग
लगाकर-निर्दय, निस्संकोच, निर्गुण, निर्बल, प्रबल, इत्यादि
। प्रत्यय
लगाकर-धनी, इलाहाबादी, बलवान, बंबइया, इत्यादि
।
(ख)
सर्वनाम से-आप
से आपसी, वह से
वैसा, यह से
ऐसा, इत्यादि
।
(ग)
क्रिया से-लगना
से लागू, भूलना
से भुलकृड्, देखना
से दिखाऊ, बेचना
से बिकाऊ, इत्यादि
।
(घ) अव्यय
से-भीतर
से भीतरी, बाहर
से बाहरी, आदि
।
विशेषण
की कुछ
विशेषताएँ :
(क) विशेषण
के लिंग, पुरुष
और वचन
विशेष्य के
अनुरूप ही
होते हैं ।
अर्थात्
विशेष्य
(संज्ञा या
सर्वनाम) के
जो लिंग, पुरुष
और वचन होंगे, वही
विशेषण के भी
होंगे ।
(ख) जब एक विशेषण के एक से अधिक विशेष्य हों, तो जो विशेष्य उसके बिलकुल निकट होगा, उसी के अनुसार विशेषण के लिंग, वचन आदि होंगे । जैसे— उजली धोती और कुरता ।
(ग)
सार्वनामिक
विशेषण तथा
सर्वनाम की
पहचान-कुछ
सार्वनामिक
विशेषणों तथा
निश्चयवाचक
सर्वनामों के
रूप में कोई
फर्क नहीं
होता । दोनों
आवस्थाओं में
उनका रूप
एकसमान बना
रहता है । अतः
उनकी पहचान के
लिए इस बात का
ध्यान रखें कि
यदि ऐसे शब्द
संज्ञा के
पहले आयें, तो
विशेषण होंगे
और यदि वे
संज्ञा के
स्थान पर या
उसके बदले
अकेले
प्रयुक्त हों, तो
वे सर्वनाम
होंगे ।
जैसे-(1) यह गाड़ी
मेरी है । इस
वाक्य में ‘यह’ संज्ञा
(गाड़ी) के
पहले आया है, अत:
विशेषण है ।
(2) वह आपके
साथ रहता है| इस
वाक्य में ‘वह’ संज्ञा
के रूप में
अकेले ही आया
है, अतः
‘वह’ सर्वनाम
है|
(घ) जब एक से अधिक शब्दों के मेल से किसी संज्ञा का विशेषण बनता है, तब उस शब्द-समूह को विशेषण-पदबंध कहते हैं । जैसे-भवन-निर्माण के काम में आनेवाले सारे सामान काफी महँगे हो गये हैं ।
प्रविशेषण:- जिस शब्द से विशेषण की विशेषता का ज्ञान होता है, उसे प्रविशेषण कहते हैं ।
जैसे-
(1) वह बहुत अच्छा
विद्यार्थी
है।
(2) कौशल बड़ा साहसी
है।
(3) हमारे
पिताजी अत्यधिक उदार
हैं।
(4) घनश्याम अतिशय भावुक
व्यक्ति है।
ऊपर
के सभी
वाक्यों के
काले अक्षरों
वाले शब्द
प्रविशेषण के
उदाहरण हैं, क्योंकि
ये सभी विशेषण
की विशेषता का
ज्ञान कराते
हैं।
विशेषण
का प्रयोग :
प्रयोग
के विचार से
विशेषण के दो
भेद हैं-
(1)विशेष्य-विशेषण
और (2) विधेय-विशेषण।
(1) विशेष्य-विशेषण–विशेष्य से पहले आनेवाले विशेषण को विशेष्य-विशेषण कहते हैं। जैसे-चंदू अच्छा लड्का है । इस वाक्य में ‘अच्छा’ लड़का का विशेषण है और उसके पहले आया है, अतः यहाँ ‘अच्छा’ विशेष्य-विशेषण है ।
(2) विधेय-विशेषण-जो विशेषण विशेष्य के बाद प्रयुक्त होता है, उसे विधेय-विशेषण कहते हैं । जैसे-यह आम मीठा है । इस वाक्य में ‘मीठा’ ‘आम’ का विशेषण है, और उसके बाद आया है, अत: विधेय-विशेषण है ।
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Kriya Aur Kriya ke Bhed in Hindi Grammar (क्रिया के भेद)
क्रिया परिभाषा (Kriya Definition in Hindi Grammar):
Dhatu in Hindi Grammar – धातु:
जिस मूल
शब्द से
क्रिया का
निर्माण होता
है, उसे धातु कहते
हैं। धातु में ‘ना’ जोड़कर
क्रिया बनायी
जाती है ।
जैसे-
खा +
ना = खाना
पढ़
+ ना = पढ़ना
जा
+ ना = जाना
लिख
+ ना = लिखना।
शब्द-निर्माण
के विचार से
धातु भी दो
प्रकार की
होती हैं-
(1) मूल धातु
और (2) यौगिक
धातु ।
मूल धातु स्वतंत्र
होती है तथा
किसी अन्य
शब्द पर आश्रित
नहीं होती।
जैसे-खा, पढ़, लिख, जा, इत्यादि
।
यौगिक धातु किसी
प्रत्यय के
संयोग से बनती
है ।
जैसे-पढ़ना से
पढ़ा, लिखना
से लिखा, खाना से
खिलायी जाती, इत्यादि
।
क्रिया के भेद (Kriya ke Bhed in Hinid Vyakaran)
कर्म, जाति तथा रचना के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं
(1) अकर्मक क्रिया
(Sakarmak
Kriya) तथा
(2) सकर्मक क्रिया
(Akarmak
Kriya)
(1) अकर्मक क्रिया
(Akarmak Kriya)–जिस
क्रिया के
कार्य का फल
कर्ता पर ही
पड़े, उसे
अकर्मक
क्रिया (Akarmak Kriya) कहते
हैं । अकर्मक
क्रिया का कोई
कर्म (कारक) नहीं
होता, इसीलिए
इसे अकर्मक
कहा जाता है ।
जैसे-श्याम
रोता है। वह
हँसता है । इन
दोनों वाक्यों
में ‘रोना’ और
‘हँसना’ क्रिया
अकर्मक हैं, क्योंकि
यहाँ इनका न
तो कोई कर्म
है और न ही उसकी
संभावना है । ‘रोना’ और
‘ हँसना।” क्रियाओं
का फल कर्ता
पर (ऊपर के
उदाहरणों में ‘श्याम’ और
‘वह’ कर्ता
हैं) ही पडता
है ।
(2) सकर्मक क्रिया (Sakarmak Kriya)–जिस क्रिया के कार्य का फल कर्ता पर न पड़कर किसी दूसरी जगह पड़ता हो, तो उसे सकर्मक क्रिया (Sakarmak Kriya) कहते हैं ।
सकर्मक क्रिया के साथ कर्म (कारक) रहता है या उसके साथ रहने की संभावना रहती है। इसीलिए इसे ‘सकर्मक” क्रिया कहा जाता है । सकर्मक अर्थात् कर्म के साथ । जैसे-राम खाना खाता है । इस वाक्य में खानेवाला राम है, लेकिन उसकी क्रिया ‘खाना’ (खाता है) का फल ‘खाना’ (भोजन) पर पड़ता है। एक और उदाहरण लें-वह जाता है । इस वाक्य में भी ‘जाना’ (जाता है) क्रिया सकर्मक है, क्योंकि इसके साथ किसी कर्म का शब्दत: उल्लेख न रहने पर भी कर्म की संभावना स्पष्ट रूप से प्रतीत होती है । ‘जाता है’ के पहले कर्म के रूप में किसी स्थान जैसे-घर, विद्यालय या पटना जैसे गन्तव्य स्थान की संभावना स्पष्ट है ।
कुछ
क्रियाएँ
अकर्मक और
सकर्मक दोनों
होती हैं ।
वाक्य में
प्रयोग के
आधार पर उनके
अकर्मक या
सकर्मक होने
का ज्ञान होता
है । जैसे
अकर्मक: उसका
शरीर खुजला
रहा है ।
सकर्मक: वह
अपना शरीर खुजला
रहा है ।
अकर्मक: मेरा
जी घबराता है
।
सकर्मक: मुसीबत
किसी को भी
घबरा देती है
।
Akarmak Kriya se Sakarmak Kriya Banana
अकर्मक क्रिया से सकर्मक क्रिया बनाना:
1.एक
अक्षरी या दो
अक्षरी
अकर्मक धातु
में ‘लाना’ जोड़कर
सकर्मक
क्रिया बनायी
जाती है ।
किंतु कहीं-कहीं
धातु के दीर्घ
स्वर को हृस्व
तथा “ओकार” को
“उकार” कर
देना पड़ता है
।
जैसे-जीना-जिलाना, रोना-रुलाना
2.दो
अक्षरी
अकर्मक धातु
में कहीं पहले
अक्षर अथवा
कहीं दूसरे
अक्षर के
हृस्व को
दीर्घ करके ‘ना’ प्रत्यय
जोड़कर भी
सकर्मक
क्रिया बनायी
जाती है ।
जैसे-उडना-उड़ाना, कटना-काटना
3.दो
अक्षरी
अकर्मक धातु
के दीर्घ स्वर
को हृस्व करके
तथा ‘आना’ जोड़कर
सकर्मक
क्रिया बनायी
जाती है ।
जैसे-जागना-जगाना, भींगना-मिंगाना, आदि
किंतु
कुछ ‘अकर्मक’ धातुओं
के स्वर में
बिना किसी
बदलाव के ही ‘आना’ जोड़कर
भी सकर्मक
क्रियाएँ
बनायी जाती
हैं । जैसे-चिढ़ना-चिढ़ाना
4.दो
अक्षरी
अकर्मक
धातुओं में ‘उकार’ को
‘ओकार’ तथा
‘इकार’ को
‘एकार’ में
बदलकर तथा ‘ना’ जोड़कर
भी सकर्मक
क्रियाएँ
बनायी जाती
हैं। जैसेखुलना-खोलना, दिखना-देखना, आदि
।
5.तीन
अक्षरी अकर्मक
धातुओं में
दूसरे अक्षर
के हृस्व स्वर
को दीर्घ करके
तथा अंत में ‘ना’ जोड़कर
सकर्मक
क्रियाएँ
बनायी जाती
हैं ।
जैसे-उतरना-उतारना, निकलना-निकालना, उखड़ना-उखाड़ना, बिगड़ना-बिगाड़ना
।
6.कुछ
अकर्मक
धातुएँ बिना
किसी नियम का
अनुसरण किये
ही सकर्मक में
परिवर्तित की
जाती हैं ।
जैसे-टूटना-तोड़ना, जुटना-जोड़ना
।
Sakarmak Kriya ke Bhed:
सकर्मक
क्रिया के
भेद-सकर्मक
क्रिया के भी
दो भेद हैं-
(1) एककर्मक
तथा (2)
द्विकर्मकः
।
(1) एककर्मक– जिस
क्रिया का एक
ही कर्म (कारक)
हो, उसे
एककर्मक
(सकर्मक)
क्रिया कहते
हैं जैसे-वह
रोटी खाता है | इस
वाक्य में ‘खाना” क्रिया
का एक ही कर्म ‘रोटी’ है
।
(2) द्विकर्मक– जिस
क्रिया के साथ
दो कर्म हों
तथा पहला कर्म
प्राणिवाचक
हो और दूसरा
कर्म निर्जीव
हो अर्थात्
प्राणिवाचक न
हो । ऐसे
वाक्य में
प्राणिवाचक
कर्म गौण होता
है, जबकि
निर्जीव कर्म
ही मुख्य कर्म
होता है ।
जैसे-नर्स
रोगी को दवा
पिलाती है। इस
वाक्य में ‘रोगी” पहला
तथा
प्राणिवाचक
कर्म है और ‘दवा’ दूसरा
निर्जीव कर्म
है ।
संरचना (बनावट के आधार पर क्रिया के भेद):
संरचना
के आधार पर
क्रिया के चार
भेद हैं-
(1) प्रेरणार्थक
क्रिया, (2) संयुक्त
क्रिया, (3) नामधातु
क्रिया तथा (4) कृदंत
क्रिया ।
(1) प्रेरणार्थक क्रिया– (Prernarthak Kriya) जिस
क्रिया से इस
बात का ज्ञान
हो कि कर्ता
स्वयं कार्य न
कर किसी अन्य
को उसे करने
के लिए
प्रेरित करता
है, उसे
प्रेरणार्थक
क्रिया कहते
हैं ।
जैसे-बोलना-
बोलवाना,
पढ़ना- पढ़वाना,
खाना- खिलवाना,
इत्यादि
।
प्रेरणार्थक
क्रियाओं के
बनाने की
निम्नलिखित
विधियाँ हैं-
(a) मूल
द्वि-अक्षरी
धातुओं में ‘आना’ तथा
‘वाना’ जोड़ने
से
प्रेरणार्थक क्रियाएँ
बनती हैं ।
जैसे-पढ़
(पढ़ना)
– पढ़ाना – पढ़वाना
चल
(चलना)
– चलाना – चलवाना, आदि
।
(b) द्वि-अक्षरी
धातुओं में ‘ऐ’ या
‘ओ’ को
छोड़कर दीर्घ
स्वर हृस्व हो
जाता है।
जैसे
– जीत
(जीतना)
– जिताना – जितवाना
लेट
(लेटना)
– लिटाना – लिटवाना, आदि
।
(c) तीन
अक्षर वाली
धातुओं में भी
‘आना’ और
‘वाना’ जोड़कर
प्रेरणार्थक
क्रियाएँ
बनायी जाती हैं
। लेकिन ऐसी
धातुओं से बनी
प्रेरणार्थक
क्रियाओं के
दूसरे ‘अ’ अनुच्चरित
रहते है ।
जैसे-समझ
(समझना)
– समझाना – समझवाना
बदल
(बदलना)
– बदलाना – बदलवाना, आदि
।
(d) ‘खा’, ‘आ’, ‘जा’ इत्यादि
एकाक्षरी
आकारान्त ‘जी’, ‘पी’, ‘सी’ इत्यादि
ईकारान्त, ‘चू’, ‘छू-ये
दो ऊकारान्त;
‘खे’, ‘दे’, ‘ले’ और
‘से’-चार
एकारान्त: ‘खो’, ‘हो’, ‘धो’, ‘बी’, ‘ढो’, ‘रो’ तथा
‘सो”-इन
ओकारान्त
धातुओं में ‘लाना’, ‘लवाना’, ‘वाना’ इत्यादि
प्रत्यय
आवश्यकतानुसार
लगाये जाते
हैं ।
जैसे- जी
(जीना)
– जिलाना – जिलवाना
(2) संयुक्त क्रिया (Sanyukat Kriya) दो
या दो से अधिक
धातुओं के
संयोग से
बननेवाली
क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते
हैं ।
जैसे-चल
देना, हँस
देना, रो
पड़ना, झुक
जाना, इत्यादि
।
(3) नामधातु क्रिया–(Nam Dhatu Kriya) संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण
इत्यादि से
बननेवाली
क्रिया को नामधातु क्रिया कहते
हैं।
जैसे-हाथ
से हथियाना, बात
से बतियाना, दुखना
से दुखाना, चिकना
से चिकनाना, लाठी
से लठियाना, लात
से लतियाना, पानी
से पनियाना, बिलग
से बिलगाना, इत्यादि
। ये संज्ञा
या विशेषण में
“ना” जोडने
से
(जैसे-स्वीकार-स्वीकारना, धिक्कार-धिक्कारना, उद्धार-उद्धारना, इत्यादि)
तथा हिंदी
शब्दों के अंत
में ‘आ’ करके
और आदि ‘आ’ को
हृस्व करके
(जैसे-दुख-दुखाना, बात—बतियाना, आदि)
बनायी जाती
हैं ।
(4) कृदंत क्रिया-(Kridant Kriya) कृत्-प्रत्ययों के संयोग से बनने वाले क्रिया को कृदंत क्रिया कहते हैं; जैसे – चलता, दौड़ता, भगता हँसता.
प्रयोग के आधार पर क्रिया के अन्य रूप:
(1) सहायक
क्रिया (Sahayak Kriya)
(2) पूर्वकालिक
क्रिया (Purvkalik Kriya)
(3) सजातीय
क्रिया (Sajatiya Kriya)
(4) द्विकर्मक
क्रिया (Dvikarmak Kriya)
(5) विधि
क्रिया (Vidhi Kriya)
(6) अपूर्ण
क्रिया (Apurn Kriya)
(a) अपूर्ण
अकर्मक
क्रिया (Apurn Akarmak Kriya)
(b) अपूर्ण
सकर्मक
क्रिया (Apurn Sakarmak Kriya)
(1) सहायक क्रिया-(Sahayak Kriya) मुख्य
क्रिया की
सहायता
करनेवाली
क्रिया को सहायक क्रिया कहते
हैं ।
जैसे-
उसने बाघ को
मार डाला ।
सहायक
क्रिया मुख्य
क्रियां के
अर्थ को स्पष्ट
और पूरा करने
में सहायक
होती है । कभी
एक और कभी एक
से अधिक
क्रियाएँ
सहायक बनकर
आती हैं । इनमें
हेर-फेर से
क्रिया का काल
परिवर्तित हो जाता
है ।
जैसे-
वह आता है ।
तुम
गये थे ।
तुम
सोये हुए थे ।
हम
देख रहे थे ।
इनमे
आना, जाना, सोना, और
देखना मुख्य
क्रिया हैं
क्योंकि इन
वाक्यों में
क्रियाओं के
अर्थ प्रधान
हैं ।
शेष
क्रिया में-
है, थे, हुए थे, रहे थे– सहायक
हैं। ये मुख्य
क्रिया के
अर्थ को स्पष्ट
और पूरा करती
हैं ।
(2) पूर्वकालिक क्रिया-(Purvkalik Kriya) जब कर्ता एक क्रिया को समाप्त करके तत्काल किसी दूसरी क्रिया को आरंभ करता है, तब पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं ।
जैसे-
वह गाकर सो
गया।
मैं
खाकर खेलने
लगा ।
(3) सजातीय क्रिया-(Sajatiya Kriya) कुछ अकर्मक और सकर्मक क्रियाओं के साथ उनके धातु की बनी हुई भाववाचक संज्ञा के प्रयोग को सजातीय क्रिया कहते हैं । जैसे-अच्छा खेल खेल रहे हो । वह मन से पढ़ाई पढ़ता है । वह अच्छी लिखाई लिख रहा है ।
(4) द्विकर्मक क्रिया-(Dvikarmak Kriya) कभी-कभी किसी क्रिया के दो कर्म (कारक) रहते हैं । ऐसी क्रिया को द्विकर्मक क्रियाकहते हैं । जैसे-तुमने राम को कलम दी । इस वाक्य में राम और कलम दोनों कर्म (कारक) हैं ।
(5) विधि क्रिया-(Vidhi Kriya)जिस क्रिया से किसी प्रकार की आज्ञा का ज्ञान हो, उसे विधि क्रिया कहते हैं । जैसे-घर जाओ । ठहर जा।
(6) अपूर्ण क्रिया-(Apurn Kriya)जिस
क्रिया से
इच्छित अर्थ
नहीं निकलता, उसे अपूर्ण क्रिया कहते
हैं। इसके दो भेद
हैं- (1)
अपूर्ण
अकर्मक
क्रिया तथा (2) अपूर्ण
सकर्मक
क्रिया ।
(a) अपूर्ण अकर्मक क्रिया-(Apurn Akarmak Kriya) कतिपय
अकर्मक
क्रियाएँ
कभी-कभी अकेले
कर्ता से
स्पष्ट नहीं
होतीं । इनके
अर्थ को
स्पष्ट करने
के लिए इनके
साथ कोई
संज्ञा या
विशेषण पूरक
के रूप में लगाना
पड़ता है। ऐसी
क्रियाओं को
अपूर्ण अकर्मक
क्रिया कहते
हैं। जैसे – वह
बीमार रहा ।
इस वाक्य में
बीमार पूरक
है।
(b) अपूर्ण सकर्मक क्रिया–(Apurn Sakarmak Kriya) कुछ
संकर्मक
क्रियाओं का
अर्थ कर्ता और
कर्म के रहने
पर भी स्पष्ट
नहीं होता ।
इनके अर्थ को
स्पष्ट करने
के लिए इनके
साथ कोई
संज्ञा या
विशेषण पूरक
के रूप में
लगाना पडता है
। ऐसी
क्रियाओं को
अपूर्ण
सकर्मक
क्रिया कहा
जाता है ।
जैसे-आपने
उसे महान्
बनाया । इस
वाक्य में ‘महान्
पूरक है.
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Kriya Visheshan | क्रियाविशेषण Kriya Visheshan ke Bhed
जिस शब्द से क्रिया की विशेषता का ज्ञान होता है, उसे क्रियाविशेषण कहते हैं।
जैसे-यहाँ,
वहाँ, अब, तक, जल्दी, अभी, धीरे, बहुत, इत्यादि
।
क्रियाविशेषणों
का वर्गीकरण
तीन आधारों पर
किया जाता है-
(1) प्रयोग
(2) रूप
(3) अर्थ
(1) प्रयोग |
(2) रूप |
(3) अर्थ |
(क) साधारण |
(क) मूल |
(क) स्थानवाचक |
(ख) संयोजक |
(ख) यौगिक |
(ख) कालवाचक |
(ग) अनुबद्ध |
(ग) स्थानीय |
(ग) परिमाणवाचक |
(घ) रीतिवाचक |
प्रयोग के
आधार पर
क्रियाविशेषण
तीन प्रकार के
होते हैं:
(क) साधारण
क्रियाविशेषण (Sadhran Kriya Visheshan)– जिन
क्रियाविशेषणों
का प्रयोग
किसी वाक्य में
स्वतंत्र
होता है, उन्हें
साधारण
क्रियाविशेषण
कहते हैं ।
जैसे-‘हाय ! अब
मैं क्या करूं
?’, ‘बेटा
जल्दी आओ !’, ‘अरे
! वह
साँप कहाँ गया
?’
(ख) संयोजक
क्रियाविशेषण
(Sanyojak Kriya Visheshan) – जिन
क्रियाविशेषणों
का संबंध किसी
उपवाक्ये के
साथ रहता है, उन्हें
संयोजक
क्रियाविशेषण
कहते हैं ।
जैसे- जब
रोहिताश्व ही
नहीं, तो
मैं जी के
क्या करूंगी 1′, ‘जहाँ
अभी समुद्र है, वहाँ
किसी समय जंगल
था ।
(ग) अनुबद्ध
क्रियाविशेषण
(Anubaddh Kriya Visheshan) – अनुबद्ध
क्रिय वशेषण
वे हैं, जिनका
प्रयोग
निश्चय के लिए
किसी भी शब्द-भेद
के साथ हो
सकता है ।
जैसे- यह
तो किसी ने
धोखा ही दिया
है ।
मैंने
उसे देखा तक
नहीं ।
आपके
आने भर की देर
है।
रूप के
आधार पर भी
क्रियाविशेषण
तीन प्रकार के
होते हैं-
(क) मूल
क्रियाविशेषण
(Mul Kriya
Visheshan) – जो
क्रियाविशेषण
दूसरे शब्दों
के मेल से नहीं
बनते, उन्हें
मूल
क्रियाविशेषण
कहते हैं ।
जैसे- ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं, इत्यादि
(ख) यौगिक
क्रियाविशेषण
(Yaugik Kriya
Visheshan) – जो
क्रियाविशेषण
दूसरे शब्दों
में प्रत्यय या
पद जोडने से
बनते हैं, उन्हें
यौगिक
क्रियाविशेषण
कहते हैं ।
जैसे-जिससे, किससे, चुपके
से, देखते
हुए, भूल
से, यहाँ
तक, झट
से, कल
से, इत्यादि
।
संज्ञा
से -रातभर, मन
से
सर्वनाम
से -जहाँ, जिससे
विशेषण
से-चुपके, धीरे
अव्यय
से – झट
से, यहाँ
तक
धातु
से -देखने आते
(ग)
स्थानीय
क्रियाविशेषण (Sthaniya Kriya
Visheshan) – अन्य
शब्द-भेद, जो
बिना किसी
रूपांतर के
किसी विशेष
स्थान पर आते
हैं, उन्हें
स्थानीय
क्रियाविशेषण
कहते हैं।
जैसे
– वह
अपना सिर
पढ़ेगा
तुम
दौड़कर चलते
हो
अर्थ के
आधार पर
क्रियाविशेषण
के चार भेद
हैं:
(i) स्थानवाचक
क्रियाविशेषण (Sthan Vachak Kriya
Visheshan) – यह
दो प्रकार का
होता है:
स्थितिवाचक
– यहाँ, वहाँ, साथ, बाहर, भीतर, इत्यादि
।
दिशावाचक
– इधर
उधर, किधर, दाहिने, वॉयें, इत्यादि
।
(ii) कालवाचक
क्रियाविशेषण
(Kaal Vachak
Kriya Visheshan) – इसके
तीन प्रकार
हैं
समयवाचक-आज, कल, जब, पहले, तुरन्त, अभी, इत्यादि
अवधिवाचक-आजकाल, नित्य, सदा, लगातार, दिनभर, इत्यादि
पौन:पुण्य
(बार-बार)
वाचक-प्रतिदिन, कई
बार, हर
बार, इत्यादि
(iii)परिमाणवाचक
क्रियाविशेषण
(Pariman Vachak
Kriya Visheshan) –
यह
भी कई प्रकार
का है
अधिकताबोधक
– बहुत, बड़ा, भारी, अत्यन्त, इत्यादि
न्यूनताबोधक
– कुछ, लगभग, थोडा, प्राय:
इत्यादि
पर्याप्तबोधक
– केवल, बस, काफी, ठीक, इत्यादि
तुलनाबोधक
–इतना, उतना, कम, अधिक, इत्यादि
श्रेणिबोधक
– थोड़ा-थोड़ा, क्रमश:
आदि
(iv)रीतिवाचक
क्रियाविशेषण (Riti Vachak Kriya
Visheshan) – जिस
क्रिया-विशेषण
से प्रकार, निश्चय, अनिश्चय, स्वीकार, निषेध, कारण
इत्यादि के
अर्थ प्रकट हो
उसे रीतिवाचक क्रियाविशेषण
कहते हैं ।
इन
अर्थों में
प्राय:
रीतिवाचक
क्रियाविशेषण
का प्रयोग
होता है
प्रकार – जैसे, तैसे, अकस्मात्, ऐसे
।
निश्चय – नि:संदेह, वस्तुतः, अवश्य
।
अनिश्चय – संभवत:, कदाचित्, शायद
।
स्वीकार – जी, हाँ, अच्छा
निषेध – नहीं, न, मत
कारण – क्योंकि, चूँकि, किसलिए
अवधारण – तो, भी, तक
निष्कर्ष – अतः, इसलिए ।
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